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Wednesday, January 19, 2011

सफल अभिकर्ता बनिए

हमें यह जीवन और जीवन बीमा बिक्री व्यवसाय ईश्वर और निगम द्वारा हमारे सौभाग्य के कारण प्राप्त हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यवश हम अपने व्यवसायिक जीवन में जीवन बीमा और वित्तीय सेवाओं के सदा भ्रम बनाए रखते है। इस व्यवसाय मे प्रत्येक व्यक्ति यह कहता मिल जायेगा कि आप सफलता प्राप्त कर सकते है, यदि आप उसके कहे अनुसार काम करते रहते है। लेकिन इन बडे-बडे दावों को किए जाने के उपरांत आज भी इस व्यवसाय में भर्ती होने वाले अभिकर्ता मे से 90% अभिकर्ता अपने प्रथम 5 वर्ष की अवधि मे इस व्यवसाय को छोड जाते है। तो प्रश्न यह है कि वास्तव मे इस व्यवसाय मे सफलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। मान लो कि आप एक Doctor, Engineer अथवा C. A. बनना चाहते है तो प्रथम आपको Doctored की पढाई से सम्बन्धित संस्थानों के सम्बन्ध मे Fundamentals को जानना होगा उसके उपरांत उसके अध्ययन के लिए किसी मेडिकल Collage मे पढाई के लिए भर्ती होते है। जब हम 5 वर्ष का Doctored का कोर्स कर लेते है तो 6 से 12 माह के लिए किसी चिकित्सालय मे हमे इंटर्नशिप करनी पडती है। इसी अवधि मे हम यह सीखते है कि हमे अपने ज्ञान को किस प्रकार व्यवहारिक रूप से उपयोग करना है। इसके अवधि को पूरा करने पर ही हम अपना स्वयं का व्यवसाय कर सकते है। लेकिन अपना व्यवसाय शुरू करने से पहले हमे मरीजों की जांच करने के लिए कुछ उपकरण भी खरीदने होते है। अब हम अपनी Practice को प्रारम्भ कर सकते है। लेकिन हमे अपने Doctored ज्ञान के सम्बन्ध मे निरंतर नई-नई सूचनाओं, आविष्कारों, दवाइयों और उपकरणों को जानते रहना पडता है। इसलिए आप किसी भी व्यवसाय मे हो और आप यदि उसमे सदा के लिए बने रहना चाहते है और सफलता प्राप्त करना चाहते है तो आपको सर्वप्रथम व्यवसाय के मूलभूत सिद्धांतों Fundamentals को जानना होगा। आप Fundamentals के सम्बन्ध मे अथवा उनके किसी भी भाग को छोड कर आगे नही जा सकते अथवा Skip नही कर सकते। यदि आपने किसी भाग को छोड दिया तो आपकी असफलता निश्चिंत है। इस व्यवसाय मे कोई Shortcut नही है। आपको Fundamentals का ज्ञान प्राप्त करना ही होगा। इस बिक्री व्यवसाय में Marketing or selling, prospecting, selling appointment, fact finding, sale skills, product benefits and know how to help people to achieve their investment and financial security, family provision and retirement income. के सम्बन्ध मे जानना होगा। आज अधिकतर अभिकर्ताओ को जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है उसमे जीवन बीमा कम्पनियां अभिकर्ता को Fundamentals को सिखाने का काम बिलकुल नही कर रही है। वह केवल उन्हें Support देने का काम करती है। प्रत्येक शाखा, प्रत्येक मण्डल केवल अभिकर्ता को Support करने का कार्य कर रहे है। जबकि इस उध्योग और व्यवसाय मे प्रथम अभिकर्ता को Fundamentals जाना आवश्यक है।
यदि अभिकर्ता को मूलभूत ज्ञान Fundamentals Knowledge जीवन बीमा कम्पनी तथा उसके अधिकारी नही देते तो हमे निम्न काम करने होंगे-

1 इस व्यवसाय मे नये भर्ती होने वाले और काम करने वाले अभिकर्ताओं की सबसे बडी समस्या यह है कि उन्हें यह भी ज्ञान नही कि उन्हें जीवन बीमा बिक्री करने मे सफल होने के लिए किन-किन बातों का जानना आवश्यक है। उन्हें यह भी ज्ञान नही कि किस प्रशिक्षण की उन्हें आवश्यकता है। इसलिए वे मूलभूत Fundamentals को जानने से वंचित रह जाते है। वे निरंतर इस व्यवसाय में संघर्ष करते रहते है और बीच-बीच मे उन्हें कुछ सूत्र मिलते जाते है। परन्तु मूलभूत बातों को जानने के बाद इस व्यवसाय मे कोई संघर्ष नही है।

2 जब एक बार मूलभूत बातों का ज्ञान हो जाता है तो आपको उस ज्ञान को व्यवहार मे लाना होता है लेकिन इस व्यवहार पर आचरण करते-करते आपको यह भी ज्ञात करने की आवश्यकता होती है कि आप किस क्षेत्र, बाजार, ग्राहक, समूह में आपको विशेष रूप से काम करना है और यह भी ज्ञात करना होगा कि किन-किन Policies पर आप विशेष रूप से उनकी व्याख्या करके उनकी अधिकतम बिक्री कर सकते है। इसे Application of fundamental knowledge and determination of your specialty कहा जाता है।

3 यदि अभिकर्ता को मूलभूत बातों का ज्ञान भलीभाँति हो जाता है तो उसे आचरण मे लाने के लिए ग्राहक की वित्तीय समस्याओं को उससे आवश्यक प्रश्नों को पूछ कर ही जाना जाता है। यदि प्रश्नों को न पूछा जाए तो ग्राहक की वित्तीय स्थिति, उसकी वित्तीय आवश्यकताएं और उसके मानसिक झुकावों को ज्ञात नही किया जा सकता। इस प्रश्नों को पूछ्ने की तकनीक का ज्ञान आवश्यक है।

4 ग्राहक की सामान्य समस्याएं तथा विशेष वित्तीय समस्याओं को विस्तार से जानने के बाद आप अपने उत्पादों का उपयोग और अपनी सेवाओं द्वारा उनका निदान अपनी प्रस्तुति से कर सकते है।

5 इसके साथ-साथ आपको अपने सम्बन्ध मे विशेषज्ञता Specialty को आपको पहचानना होगा। विशेषज्ञता बाजार, ग्राहक की श्रेणी, ग्राहकों का विशेष समूह तथा उत्पाद के सम्बन्ध जानी जाती है। किन ग्राहकों तक आपकी पहुंच है? किस श्रेणी में अथवा व्यवसाय अथवा व्यापार अथवा विभाग अथवा मार्केट मे अभिकर्ता Comfortable होता है वह उसका विशेष बजार होता है।

6 जिस Policy को अभिकर्ता स्वयं अच्छी तरह समझता है और ग्राहक को भी अच्छी तरह समझा सकता है वही उसकी Specialty product अथवा अनेक Specialty products हो सकते है। प्रत्येक अभिकर्ता कुछ विशेष पालिसियों की बिक्री करने मे विशेष दक्ष होता है। वही पालिसियां वह अधिकांश ग्राहकों को बेचता है।

7 अभिकर्ता को एक और Specialty प्राप्त करनी होती है और वह है कि कौन से ग्राहक अथवा बीमाधारी उसकी नये ग्राहकों की प्राप्ति मे सहायता करते है। उन्हे भी उसे चिन्हित करते सरना चाहिए और उनका उपयोग करना चाहिए।

यही उपर लिखी कुछ बातें अभिकर्ता के औजारों का भण्डार Tool kits है। यही बातें एक विश्वसनीय अभिकर्ता Trusted Agent और एक Trusted मित्र की छवि का निर्माण करते है।

अभिकर्ता के लिए सफलता के राज

1 ग्राहकों को जीवन बीमा सम्बन्धी अपनी बिक्री, ग्राहक सेवा और शाखा कार्यालय के सब काम स्वयं करो। इससे कुशलता आती है और प्रेरणा भी प्राप्त होती है।

2 प्रत्येक मिलने वाले से सीखो। नई सूचना, नई योजना, नये नियम सबसे पहले जानो।

3 एक महीने में केवल एक ही बीमा योजना Table Plan को बेचो अथवा प्रत्येक सप्ताह केवल एक ही Plan बेचो। इससे आप उस योजना और प्रत्येक Policy को बार-बार बेचने से आप उसे पढेंगे और उसको उसके बारे में बार-बार अधिकतम जानने की आवश्यकता पडेगी। इससे आप धीरे-धीरे एक दिन सब Policies के विशेषज्ञ बन जाओगे।

4 प्रत्येक किये जाने वाले/कर रहे काम में अपना पूरा मन, अपनी पूरी ऊर्जा और पूरे प्रयत्नों को डाल दो। किसी भी काम को घटिया मत समझो। घटिया विचार होते है काम कभी घटिया नही होता।

5 केंद्रित Focus होकर काम को करो। मन को किये जाने वाले काम से हटने न दो।

6 अपने जीवन/व्यवसायिक/पारिवारिक लक्ष्यों को निर्धारित करो। इन्हे छोटे-छोटे भागों में बांटकर एक-एक को प्राप्त करते हुए निरंतर सक्रिय रहो। इनमें समय, वातावरण और अपनी क्षमता के अनुसार परिवर्तित करते रहो। सक्रियता और परिवर्तन के साथ जीवन को जीना कहते है।

7 अपना कार्य/बिक्री/यात्रा/सेवा/सहायता सम्बन्धी प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व पूरी तैयारी करो। संसार में सफ़लता प्राप्ति का सबसे बडा रहस्य पूर्व तैयारी Preparation है तैयारी मे योजना बनाना, अपने वर्तमान साधनों का आंकलन करना और अपनी योजना की बारीकियों को जानना, वर्तमान और अतिरिक्त साधनों को जुटाना भी सम्मिलित है।

8 यह सच हमेशा याद रखो कि भारत में अभी केवल 4% लोगो का बीमा हुआ है और इस व्यवसाय में काम करने की अपार सम्भावनाए है। इसलिए जो अभिकर्ता सोच- समझ कर अपना कार्य करते हुए अपने ग्राहकों और अपने Target Market का चुनाव करते है और निष्ठापूर्वक मेहनत करते है वे कभी असफल नही होते।

9 अपनी चमडी मोटी रखो। हमारे व्यवसाय मे हमें अधिक नही No प्राप्त होता है। इस No को कभी व्यक्तिगत आक्षेप के रूप मे मत लो। इसे ही सफलता का सूत्र मानो। इस No से हम बच नही सकते परन्तु इसके बुरे प्रभाव से हम बच सकते है। इसे सामान्य हवा का झोंका मानो। यह जैसे एक ओर से आता है दुसरी ओर बह जाता है। यह बिक्री व्यवसाय मे प्राकृतिक है।

10 विश्वास करो कि तुम सफल हो जाओगे क्योंकि यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमे हम जब चाहे, जिससे भी चाहें जीवन बीमा अथवा जीवन बीमा सम्बन्धी सेवा देने के लिए मिल सकते है और अनुरोध कर सकते है। आप यदि एक दिन मे 10 व्यक्तियों से मिलते है तो कम से कम 2 व्यक्ति आप पर विश्वास करने वाले अवश्य मिल जायेंगे। ये व्यक्ति आपकी बात भी सुनेंगे और आपसे मिलकर प्रसन्न भी होंगे।

11 जिस मार्ग से किसी काम के लिए जाओ तो उसी मार्ग से वापिस न हो। इससे आप प्रत्येक बार नये लोगो, स्थान और विचारो से मिल सकेंगे।

12 जब ग्राहक से मिलने जाएं तो अपना ध्यान उसकी बातों पर रखो। ग्राहक जिन शब्दों बोलता है, उन्ही शब्दों और भाषा का उपयोग करते हुए उसे अपनी Policy के गुण बताओ और उसे मनाओ।

13 जीवन बीमा बिक्री व्यवसाय मे अभिकर्ता की सफलता उतनी ही मात्रा मे प्राप्त होती है जितनी मात्रा में वह ग्राहक की भाषा में बात करता है और ग्राहक को वैसी ही पालिसी बेचता है जैसी ग्राहक लेना चाहता है।

14 ग्राहक और जीवन बीमा अभिकर्ता में बिक्री करते समय जो कम बोलता है और जो बाद में बोलता है, वही सफल होता है।इसलिए अधिक और शीध्र बिक्री करने के लिए अभिकर्ता को चाहिए कि वह ग्राहक को पहले और अधिक से अधिक बोलने का अवसर दे, स्वंय कम बोले। ग्राहक को सुनने से अभिकर्ता ग्राहक के मन की बातें जान सकता है तथा उन्ही के अनुसार अपनी Policy की प्रस्तुति कर सकता है।

15 जीवन बीमा के सम्बन्ध में कुछ कहानियाँ याद रखो। जीवन बीमा कराने पर मृत्यु होने पर दावा भुगतान प्राप्त होता है, उससे लाखों परिवारों को लाभ प्राप्त हो चुका है और भविष्य मे भी होता रहेगा। ऐसी कुछ सच्ची घटनाएं आपके शहर, गाँव, पडोस अथवा कही भी हो गई हो, उनके सम्बन्ध मे ज्ञान प्राप्त करो और उसे एक कहानी के रूप मे स्वयं लिखो। यह साथी अभिकर्ता से भी पूछा जा सकता है इस सम्बन्ध मे कुछ कहानियाँ याद रखो। इन्हें ग्राहको को जीवन बीमा बिक्री करते समय सुनाओ। इससे सुनने वाले की अपने परिवार के प्रति समर्पण की भावनाएं जाग जाती है और बीमा ना बिकना हो तो भी बिक जाता है और छोटी Policy लेने वाला बडी Policy ले लेता है।

16 जीवन बीमा की बिक्री को निरन्तर करते रहो। निरंतरता से काम एक गीत बन जाता है, जिसे करते समय संगीत सुनने के समान आनंद आता है। इसलिए जो काम कभी आपको कठिन भी लगे, उसे बार-बार करते रहने से वह सरल बन जाता है। उसमें भी उसी प्रकार आनंद आने लगता है, जैसे उस काम को करने मे हमे आनन्द आता है, जो हमे बहुत पसंद है।

17 असफलता से कभी मत डरो। अधिक और बार-बार असफल होने वाले लोगो मे से ही सफल लोगो की गिनती संसार मे अधिक है। जो हार मान लेते है, वो कभी सफल नही होते।
18 80/20 के सूत्र को कभी मत भूलों। 80% काम 20% ग्राहकों से मिलता है और 80% ग्राहक 20% काम देते है। इसलिए अपना समय उन 20% ग्राहकों पर लगाओ जो ग्राहक हमें 80% काम देते है।

19 सदा व्यस्त रहो। किसी न किसी काम मे व्यस्त रहो काम करते समय व्यक्ति घडी की तरफ नही देखता। जो काम करते समय घडी देखता है, वह अपने द्वारा किए जाने वाले किसी काम को अच्छी तरह नही कर सकता।

जीवन बीमा का ग्राहक क्या पूछता है

 क्या मुझे जीवन बीमा की आवश्यकता है अथवा यदि है तो उसे ज्ञात नही है। वह जानना चाहता है कि वह आवश्यकता क्या है?
 मुझे यदि बीमा की आवश्यकता है तो वह कितनी है अर्थात वह कितना बीमा कराए अथवा कितनी किश्त की राशि दे?
 मुझे कितने वर्षो तक की अवधि की Policy लेनी चाहिए? क्या छोटी अवधि और लम्बी अवधि की Policy लेनी चाहिए या छोटी अवधि और लम्बी अवधि दोनो का पैकेज लेना चाहिए?
 कौनसी Policy अथवा बीमा योजना लेनी चाहिए और क्यों यही Policy लेनी चाहिए जो अभिकर्ता के रूप में आप बता रहे है?
 कितनी राशि किस-किस अंतराल मे देनी चाहिए? समिति भुगतान, परिपक्वता तक देय अथवा एकल प्रीमियम मे रूप मे कितनी राशि दी जानी चाहिए?
 मुझे मेरी राशि को जीवन बीमा में जमा कराने पर क्या ब्याज/लाभाष प्राप्त होगा?
 क्या Policy में उसे बंद करने, धन निकालने, तत्काल आवश्यकता पर धन प्राप्त हो जाऐगा? क्या बीमा परिपक्वता/मृत्यु/मांग करने पर कोई कठिनाई मुझे/मेरी पत्नी अथवा बच्चों को आऐगी? यदि हां तो वे क्या है?
 दूसरी बीमा कम्पनी अथवा अपने सम्बन्धी अथवा अपने मित्र अभिकर्ता को छोड़कर मैं आपसे क्यों बीमा कराऊँ? मुझे आपसे बीमा कराने में क्या अतिरिक्त लाभ होगा?

निम्न सूत्रों को याद रखो

विषय Content : यह प्रस्तुति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग होता है। तथ्यों, आँकड़ों, परिपत्रों और चित्रों का अधिकतम प्रभाव पडता है।

आंखे Eyes : ध्यान रखें कि आपकी आंखे श्रोताओं कि आंखों से बाहर ना जाए। उनकी आंखों में झाकें और अपनी बात कहें। दूसरा बिन्दु दूसरे व्यक्ति आंखों में आंखे डाल कर कहें। आप श्रोताओं को पैरों से सिर तक देख सकते है, उससे बाहर नही। नीचे कभी मत देखो, जिससे उन्हे ऐसा न लगे कि आप अपनी बात करने के लिए कुछ सोच रहे है।

हाथ Hand : अपने हाथों में ऐसी कोई वस्तु न पहने, न पकडे अथवा न रखे, जो श्रोताओं का ध्यान आपकी आंखों अथवा चेहरे से हटाएं। जो बात कहे उसी पर जोर दे। आपके नजदीक कोई संगीत अथवा शोर नही होना चाहिए।

स्थिति Stance : अपनी बात और भाव भंगिमा Stance and Gestures को समान्तर रखें। शरीर को आवश्यकतानुसार आगे - पीछे, दाएं - बाएं झुकाए। बैठ कर बोलना पडे तो अपनी टांगों को क्रास ना करें। ऐसी स्तिथि मे बैठे कि आप आराम महसूस करे।

वाणी Volume and Inflection : साधारण बातचीत के स्वर से थोडा अधिक ऊँचा स्वर रखें, परन्तु चिल्लाएं नही। Volume and Inflection में तारतम्य बनए रखना आवश्यक है।

आत्म विश्वास Confidence : जो बात हम कह रहे है, उस पर हमारा विश्वास होना आवश्यक है। भाषण के Non-verbal elements जो आपकी कुशलता से उत्पन्न होते है, वे आत्म विश्वास की झलक होते है। आत्म विश्वास, हमारे ज्ञान और कुशलता का झरना होता है।

गति Pace : जितना अधिक अभ्यास किया जाता है और जितना अधिक विषय वस्तु को जाना जायेगा, उतना ही अधिक हम अपनी बोलने की गति पर नियंत्रण रख सकते है। लेकिन अधिक ज्ञान परन्तु कम अभ्यास श्रोताओं को निराश कर सकता है। अभ्यास ज्ञान को समझने में सबसे बडा सहायक है।

भाषण कैसे दिया जाता है

यदि आपको कभी भाषण देना पडे तो निम्न सूत्रों के अनुसार अपनी तैयारी करें-
बताएं, आप किस विषय पर बात करेंगे : यदि श्रोताओं को ज्ञात नही है कि आप किस विषय पर अपने विचार प्रकट करने जा रहे हैं, तो प्रथम उन्हें बताए कि आप क्या कहने जा रहे है और आप जो बात कहेंगे , उससे उन्हे क्या लाभ होगा

सदा सच बोले : सदा सच बोलने का नियम सामान्य ज्ञान का प्रथम नियम है। तर्क देकर आप सच पर लीपा - पोती कर सकते है, लेकिन अधिकांश लोग लीपा - पोती को पहचान लेते है। सच बोल कर आप श्रोताओं में से कुछ को निष्ठापूर्ण मित्र बना लेते है।

श्रोताओं की जिज्ञासाओं को दूर करना चाहिए। विषय वस्तु का ज्ञान होने से आप उस पर बोल भी सकते है और श्रोताओं के प्रश्न का उत्तर भी दे सकते है।

अपने संदेश को साधारण और सरल रखिए : यह भाषण देने का गायत्री मंत्र है आप जो कहना चाहते है, उसे श्रोताओं को समझ भी आना चाहिए। सरलता, संक्षिप्तता और स्पष्टता से अपनी बात कहना विषय को प्रभावशाली बना देता है।

सामान्य भाषा में बोलिए : तकनीकी शब्दों को तकनीकी लोग समझते हैं। सामान्य लोग सामान्य बात समझते है। इसलिए जैसे लोग हों वैसी भाषा का उपयोग करना चाहिए, लेकिन तकनीकी लोगो को भी सामान्य शब्द पसंद आते है।

धीमी गति से बोलिए : शीघ्रता से बोलने से लड़खड़ाने का भय रहता है और श्रोता समझ भी नही सकते कि आप क्या कह रहे है। विशेष रूप से कम समय में अधिक बाते बताने का प्रयत्न करना भाषण में शीघ्रता ला देता है और अपनी बात कहते समय मूल बातें छूट जाती है।

शब्दों का चित्र खींचिए : हम अपनी भूलों और दूसरो की सफलताओं से सीखते है। यदि हम अपने अथवा किसी अन्य के जीवन के संबंध मे किसी घटना को बताए तो श्रोता शीघ्र समझते है। घटना को चित्रित करने से वास्तविक घटना क्रम को श्रोता अपने जीवन की किसी घटना से उसका संबंध स्थापित करने का प्रयत्न करते है और वह मस्तिष्क में स्थाई रूप से जम जाती है।

अपनी महत्वपूर्ण बात को सदैव और बार-बार कहिए : अपने संदेश को श्रोताओं के मन मे बिठाने के लिए उसे बार-बार जोर देकर दोहराना भी आवश्यक होता है। अपनी बात को ठूंसना भी नही है, प्राकृतिक रूप से किसी अन्य समन्वय शील बात को मिला कर कहना भी आवश्यक है।

ध्यानपूर्वक सुनिए : श्रोताओं को प्रश्न पूछने के लिये उत्साहित करना चाहिए। जो बाते वे पूछे, उन्हे कहने के लिए उत्साहित करें। उन्हें ध्यानपूर्वक सुनना भी चाहिए। श्रोताओं के बोलते समय बीच मे टोकना भी नही चाहिए। इससे श्रोताओं पर नियंत्रण बना रहता है। श्रोताओं को सुनकर, उनका उत्तर देने से विषयों में अधिक स्पष्टता आ जाती है। ध्यान पूर्वक सुनना और उसका उत्तर देने से बोलने वाला अपनी बात का पुर्नमूल्याकंन कर सकता है। उसे अपनी बात को पुन: स्पष्टता से कहने का अवसर प्राप्त हो जाता है।

आगे की सोचिए : अपनी कही हुई बात को पुन स्पष्ट करते समय उत्तर देने के पश्चात उससे नये प्रश्न उत्पन्न होने के संबंध मे भी सोचना चाहिए। प्रत्येक उत्तर में नये प्रश्न छुपे होते है। अपनी बात और अधिक स्पष्ट करने का अवसर प्राप्त होता है। आपका प्रत्येक उत्तर नये बिंदुओं को जन्म देता है। इन नये प्रश्नों का उत्तर देने के लिए भी पूर्व तैयारी आवश्यक है।

नये ग्राहकों से क्या कहें

अधिकांश अभिकर्ताओ को प्रथम भेंट के समय ग्राहक से क्या कहे, इस बात पर विचार करना एक पागलपन लगता है यह इसलिए कि शीर्षस्थ और उच्चतम श्रेणी के जीवन बीमा अभिकर्ताओ मे केवल 1% ही इस बात ज्ञान रखते है और वह भी केवल उस समय जब उनकी अन्तप्रेरणा Intuition जैसा उन्हें निर्देशित करती है। अधिकांश ऐसे शीर्षस्थ अभिकर्ता इस प्रकार अन्त प्रेरणा की बात को जानते ही नही। अनुभवी बिक्री विशेषज्ञ अपने निरंतर अध्ययन और अनुभव से बिक्री संबंधी इन रहस्यों को समझते हैं।
सर्वश्रेष्ठ अभिकर्ता अपनी प्रथम भेंट में सुनिश्चित करते हुए प्रारम्भ करते है, कि क्या वे अपने ग्राहकों को विश्वास पूर्ण और आदरणीय मान सकते है इसे पश्चिम में Trust and Respect Inquiry (TRI) का नाम दिया जाता है, जिसमे 15-20 मिनट से लेकर 1 घंटे का समय लगता है। इस प्रथम भेंट मे यह सार निकाल लेते है कि यह वास्तविक ग्राहक है अथवा नही है और विश्वसनीय और आदर पूर्ण है और ग्राहक भी उन्हे वैसा ही मानता है। इस निचोड़ में High degree of accuracy होती है।
विश्वास और आदर ग्राहक संबंधी लिया जाने वाला स्वत घटित होने वाला निर्णय Unconscious decision होता है अर्थात यह भी ग्राहक के अर्न्तमन से लिया जाता है यह ग्राहक के मन की गहराई से उत्पन्न होने वाला निर्णय होता है। यह बात हमे करिश्मा अथवा जादुई लग सकती है, लेकिन यह मनोविज्ञान द्वारा प्रायोगिक बात है। इसी शक्तिशाली अंत-प्रेरणा से बडे-बडे निर्णय लिए जाते है। विशेष रूप उन व्यवसायों में जिनके लेन देन के कोई स्थूल वस्तु नही होती। प्रेम मित्रता और आदर के कारण होते है
TRI विधि से परस्पर सम्प्रेषण आवश्यकताओं को ज्ञात करना, मनाना, तर्क सम्मत तथ्य प्रस्तुत करना जीवन बीमा के गुण बताना और आपत्तियों का उत्तर देने से सब भ्रांतिया दूर हो जाती है। वास्तव मे किसी का आदर और विश्वास पाने और दिलाने अथवा करने से उसमें भी ये दोनो स्वत उत्पन्न हो जाते है। ग्राहक को अपने उत्पादों के संबंध में विस्तार अथवा संक्षेप में पूरी तरह समझाना भी आदर और विश्वास के कारण एक सरल कार्य हो जाता है। अधिकांश लोग वित्तिय उत्पादों की बारीकियों को समझना ही नही चाहते। वे केवल विश्वसनीय और आदर पूर्ण व्यक्ति के दायित्व पर यह कार्य छोड देना चाहते है और करते समय लोग अपने इस निर्णय में निश्चिंत रूप से विश्वस्त होते है। वे कोई सदेह नही करते।
यह सूत्र पकडने योग्य है। TRI विधि जीवन बीमा बिक्री व्यवसाय में कभी सफल नही होगी, यदि अभिकर्ता विश्वसनीय और आदर पूर्ण नही होता।
यह बात गांठ बांध लो, विश्वास और आदर तथा तीसरी बात अपने व्यवसाय से संबंधित जटिल से जटिल समस्या को हल करने की क्षमता अभिकर्ता को ना केवल प्रथम पंक्ति का अभिकर्ता बनाती है, बल्कि उसे अपने व्यवसायिक और सांसारिक जीवन में एक लोकप्रिय व्यक्ति भी बनाते है।

जीवन बीमा क्या है

जीवन बीमा एक अनुबन्ध अथवा करार है। इसका अर्थ यह है कि एक विशेष घटना के घटने पर बीमेदार को अथवा उसके उत्तराधिकारी/ उत्तराधिकारियो को कोई पूर्व निशचित धन दे दिया जायेगा। प्राय: एक साधारण परिवार अपनी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं अर्थात रोटी, कपडा व मकान के लिए परिवार के कर्ता को निरन्तर प्राप्त होने वाली आय पर निर्भर होता है। जब तक कर्ता जीवित है, आय भी जीवित है परिवार की आवश्यकताएं भी पूरी होती रहती है। परन्तु यदि कर्ता को मृत्यु ने अचानक उठा लिया तो परिवार को आर्थिक कठिनाई का सामना करना पडेगा। कितने ही परिवारों की दशा ऐसे समय में बडी दयनीय हो जाती है। जीवन का अंत कब होगा यह निशचित नही है। यह अनिश्चितता ही वह जोखिम है जो कर्ता की मृत्यु से होने वाली आर्थिक क्षति की पूर्ति के लिये किसी प्रकार के संरक्षण की आवश्यकता को जन्म देती है।
बीमा वह साधन है जो जोखिम को समाप्त करता है और अनिश्चितता को निश्चितता मे बदल देता है।