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Wednesday, January 19, 2011

भाषण कैसे दिया जाता है

यदि आपको कभी भाषण देना पडे तो निम्न सूत्रों के अनुसार अपनी तैयारी करें-
बताएं, आप किस विषय पर बात करेंगे : यदि श्रोताओं को ज्ञात नही है कि आप किस विषय पर अपने विचार प्रकट करने जा रहे हैं, तो प्रथम उन्हें बताए कि आप क्या कहने जा रहे है और आप जो बात कहेंगे , उससे उन्हे क्या लाभ होगा

सदा सच बोले : सदा सच बोलने का नियम सामान्य ज्ञान का प्रथम नियम है। तर्क देकर आप सच पर लीपा - पोती कर सकते है, लेकिन अधिकांश लोग लीपा - पोती को पहचान लेते है। सच बोल कर आप श्रोताओं में से कुछ को निष्ठापूर्ण मित्र बना लेते है।

श्रोताओं की जिज्ञासाओं को दूर करना चाहिए। विषय वस्तु का ज्ञान होने से आप उस पर बोल भी सकते है और श्रोताओं के प्रश्न का उत्तर भी दे सकते है।

अपने संदेश को साधारण और सरल रखिए : यह भाषण देने का गायत्री मंत्र है आप जो कहना चाहते है, उसे श्रोताओं को समझ भी आना चाहिए। सरलता, संक्षिप्तता और स्पष्टता से अपनी बात कहना विषय को प्रभावशाली बना देता है।

सामान्य भाषा में बोलिए : तकनीकी शब्दों को तकनीकी लोग समझते हैं। सामान्य लोग सामान्य बात समझते है। इसलिए जैसे लोग हों वैसी भाषा का उपयोग करना चाहिए, लेकिन तकनीकी लोगो को भी सामान्य शब्द पसंद आते है।

धीमी गति से बोलिए : शीघ्रता से बोलने से लड़खड़ाने का भय रहता है और श्रोता समझ भी नही सकते कि आप क्या कह रहे है। विशेष रूप से कम समय में अधिक बाते बताने का प्रयत्न करना भाषण में शीघ्रता ला देता है और अपनी बात कहते समय मूल बातें छूट जाती है।

शब्दों का चित्र खींचिए : हम अपनी भूलों और दूसरो की सफलताओं से सीखते है। यदि हम अपने अथवा किसी अन्य के जीवन के संबंध मे किसी घटना को बताए तो श्रोता शीघ्र समझते है। घटना को चित्रित करने से वास्तविक घटना क्रम को श्रोता अपने जीवन की किसी घटना से उसका संबंध स्थापित करने का प्रयत्न करते है और वह मस्तिष्क में स्थाई रूप से जम जाती है।

अपनी महत्वपूर्ण बात को सदैव और बार-बार कहिए : अपने संदेश को श्रोताओं के मन मे बिठाने के लिए उसे बार-बार जोर देकर दोहराना भी आवश्यक होता है। अपनी बात को ठूंसना भी नही है, प्राकृतिक रूप से किसी अन्य समन्वय शील बात को मिला कर कहना भी आवश्यक है।

ध्यानपूर्वक सुनिए : श्रोताओं को प्रश्न पूछने के लिये उत्साहित करना चाहिए। जो बाते वे पूछे, उन्हे कहने के लिए उत्साहित करें। उन्हें ध्यानपूर्वक सुनना भी चाहिए। श्रोताओं के बोलते समय बीच मे टोकना भी नही चाहिए। इससे श्रोताओं पर नियंत्रण बना रहता है। श्रोताओं को सुनकर, उनका उत्तर देने से विषयों में अधिक स्पष्टता आ जाती है। ध्यान पूर्वक सुनना और उसका उत्तर देने से बोलने वाला अपनी बात का पुर्नमूल्याकंन कर सकता है। उसे अपनी बात को पुन: स्पष्टता से कहने का अवसर प्राप्त हो जाता है।

आगे की सोचिए : अपनी कही हुई बात को पुन स्पष्ट करते समय उत्तर देने के पश्चात उससे नये प्रश्न उत्पन्न होने के संबंध मे भी सोचना चाहिए। प्रत्येक उत्तर में नये प्रश्न छुपे होते है। अपनी बात और अधिक स्पष्ट करने का अवसर प्राप्त होता है। आपका प्रत्येक उत्तर नये बिंदुओं को जन्म देता है। इन नये प्रश्नों का उत्तर देने के लिए भी पूर्व तैयारी आवश्यक है।

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